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प्यार और प्रेम में क्या अन्तर होता है? अर्थात् प्यार किसे कहते हैं? और प्रेम करना किसे कहा जाता है?

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प्यार इन शरीरों से ही होता है; जो कि मायिक ही होता है और प्रेम केवल परमात्मामें ही होता है जो कि वास्तविक ही होता है।     "इस समस्त चराचर जगत् से प्यार ही होता है, प्रेम नहीं।" और प्यार में ही कपट और छल-छिद्र भी होते हैं। कपट और छल-छिद्र करनेवाले परमात्मा को सुहाते ही नहीं हैं। परमात्माको तो निर्मल मन वाले मनुष्य ही पाते हैं अथवा प्राप्त करते हैं - निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।     परमात्मा तो उन्हींके हृदयोंमें वशने वाले हैं; जिनके न तो काम, क्रोध, मद, अभिमान और मोह है; न लोभ है, न क्षोभ है; न राग है, न द्वेष है; और न कपट, दम्भ और माया ही है। अर्थात् -  काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा।। जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया।।      प्रेम तो केवल परम आत्मासे ही होता है; क्योंकि जब अत्यधिक कष्ट होता है तब हम इस शरीरको भी छोड़ देनेकी इच्छा करके सुखी होनेकी सोच रखते ही हैं। जैसा कि अत्यधिक कष्ट होनेपर हम शरीरसे राग, मोह आदि नहीं रखते हैं; और अगर ऐसे ही राग, मोह, आसक्ति आदि सदा के लिये जो लोग इन शरीरोंसे रखते

जानिए गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया

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भगवान श्री गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मुख गज यानी हाथी का है। भगवान गणेश का यह स्वरूप विलक्षण और बड़ा ही मंगलकारी है।     आपने भी श्री गणेश जी के गजानन बनने से जुड़े पौराणिक प्रसंग सुने-पढ़े होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं या विचार किया है कि गणेश का मस्तक कटने के बाद उसके स्थान पर गजमुख तो लगा, लेकिन उनका असली मस्तक कहां गया? जानिए, उन प्रसंगों में ही उजागर यह रोचक बात –     श्री गणेश के जन्म के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यता है। प्रथम मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, तब इन्द्र, चन्द्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए। इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, जो श्रापित थे कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। इसलिए जैसे ही शनि देव की दृष्टि गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्रीगणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया। इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकन

li.खाली-माली

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बहुत पुराने समय की बात है। भाटकू ठाकर के गांव का नाम पाली था। अचानक उसके पिता की मृत्यु हो गई। अपने बाल कटवाकर, अपने पिता की अस्थियां चुनकर वह हरिद्वार को चल पड़ा था। जाने से पहले उसे सभी ने बहुत समझाया कि वह रास्ते पर ठीक से जाये। पैसा-धेला सम्हाल कर रखकर गंगा में पिता की अस्थि विसर्जन कर सीधे अपने घर आए। भरी और निर्निमेष आंखों से उसने हामी भरी थी। उस समय में गाडियां तो होती न थी. पैदल ही हरिद्वार जाते थे। गंगा के रास्ते पर वह बीच में ही पहुंचा था। प्यास लगने पर रास्ते के किनारे एक घर में वह खड़ा हो गया। वहां अकेली, गोरी-सनक्खी झाबू नाम की महिला फसल की गाहाई कर रही थी। भाटकू ठाकर ने वहां पानी-वानी पीया और उसके पलके झपकाने और उसकी मीठी बातों में उसकी जान ही निकल गई। झाबू के हंसने और उसके थोड़ा-सा रुकने को कहे जाने पर वह बड़े चाव से वहीं रुक गया। झाबू ने मीठे-मीठे उसे बातों में ऐसा उलझाया कि उसे गंगा जाने और न ही घर लौटने की होश ही रही। भाटकू ठाकर झाबू के प्रेम में डूब गया। उसने भाटकू से अनाज गाहाई और खेती-बाड़ी का सारा काम करवाया। कपड़े-लत्ते, रजाई-तलाई, भाण्डे-बर्तन से लेक

मन का चैन

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\\मन का चैन \\* एक गरीब आदमी था वो हर रोज अपने गुरु के आश्रम जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था।  अक्सर वो अपने गुरु से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए एक दिन गुरु ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए काम करने आते हो।  उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे गुरु ने कहा कि तुम चिंता मत करो।  जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा युवक चला गया समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया।   कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा गुरु ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा--क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो वो व्यक्ति बोला--बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन

अहंकार की सजा

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                  *!! अहंकार की सजा !!* एक बहुत ही घना जंगल था उस जंगल में एक आम और एक पीपल का भी पेड़ था एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था. रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा- हे पीपल भाई, क्‍या मैं आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लुं? पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नहीं था अहंकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा- हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बना लो। मुझे परेशान मत करो. पीपल की बात सुन कर पास ही खड़े आम के पेड़ ने कहा- पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी. पीपल ने आम से कहा- तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नहीं कह देते? इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा- हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो। इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के प

पुण्य का फल

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एक सेठ बस से उतरे, उनके पास कुछ सामान था।आस-पास नजर दौडाई, तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया। सेठ ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा- "अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे?' आपकी मर्जी, जो देना हो, दे देना, लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ, तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना । सेठ ने डाँट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे, लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसे राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी। मजबूरी में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया । मजदूर दौड़कर आया और बोला - "मेरी शर्त आपको मंजूर है?" सेठ ने स्वार्थ के कारण हाँ कर दी। सेठ का मकान लगभग 500मीटर की दूरी पर था । मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला, सेठजी आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ। सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना। मजदूर ने खुश होकर कहा- 'जो कुछ मैं बोलू, उसे ध्यान से सुनना , यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया । और दोनों मकान तक पहुँच गये। मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया , सेठ ने जो पैसे दिये, ले लिये और सेठ से बोला! सेठजी मेरी बात आपने ध्

अच्छे संस्कार

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 बहुत ही बड़े उद्योगपति का पुत्र कॉलेज में अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारी में लगा रहता है, तो उसके पिता उसकी परीक्षा के विषय में पूछते है तो वो जवाब में कहता है कि हो सकता है कॉलेज में अव्वल आऊँ, अगर मै अव्वल आया तो मुझे वो महंगी वाली कार ला दोगे जो मुझे बहुत पसन्द है.. तो पिता खुश होकर कहते हैं क्यों नहीं अवश्य ला दूंगा. ये तो उनके लिए आसान था. उनके पास पैसो की कोई कमी नहीं थी। जब पुत्र ने सुना तो वो दो गुने उत्साह से पढाई में लग गया। रोज कॉलेज आते जाते वो शो रुम में रखी कार को निहारता और मन ही मन कल्पना करता की वह अपनी मनपसंद कार चला रहा है। दिन बीतते गए और परीक्षा खत्म हुई। परिणाम आया वो कॉलेज में अव्वल आया उसने कॉलेज से ही पिता को फोन लगाकर बताया की वे उसका इनाम कार तैयार रखे मै घर आ रहा हूं। घर आते आते वो ख्यालो में गाडी को घर के आँगन में खड़ा देख रहा था। जैसे ही घर पंहुचा उसे वहाँ कोई कार नही दिखी. वो बुझे मन से पिता के कमरे में दाखिल हुआ. उसे देखते ही पिता ने गले लगाकर बधाई दी और उसके हाथ में कागज में लिपटी एक वस्तु थमाई और कहा लो यह तुम्हारा गिफ्ट। पुत्र ने बहुत ही अ