उन्नाव में भाईचारे के बाद अब बहनचारा भी सामने " मंदिर नहीं बनने देंगे"
उन्नाव में भाईचारे के बाद अब बहनचारा भी सामने " मंदिर नहीं बनने देंगे"
उन्नाव में मुस्लिम बहुल इलाका , जहां थोड़े से हिंदू अपना जीवन जी रहे हैं । शांतिप्रिय कहे जाने वाले मुसलमानों के इलाके में अशांति चाही हुई है और अशांति कथित शांति प्रिय लोगों ने ही फैलाई हुई है। हिंदू वहां अपना मंदिर बनाना चाह रहे हैं लेकिन मुसलमान ये होने नहीं दे रहे । अब मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि मंदिर की घंटी बजने से हमें दिक्कत होगी। क्या अब भी किसी को शंका है कि ये कितने भाई और बहन चारा वाले लोग हैं, ये कितने शांति प्रिय है..?
हिंदू बहुल इलाकों में मुसलमान आराम से रहते हैं, उनके मस्जिद भी आसानी से बन जाती हैं यहां तक खुद हिंदू ही उनके मस्जिद, मजार आदि बनाने में मदद करते हैं लेकिन शांतिप्रिय कहे जाने वाले मुसलमानों के इलाकों में हिंदू अपना एक मंदिर नहीं बना सकते, अपने त्योंहार नहीं माना सकते, शोभायात्रा नहीं निकाल सकते। यही है सेक्युलरिज्म और भाईचारे का सच जिसे जितना जल्दी हिंदू समाज समझ जाए उतना अच्छा है।
उन्नाव के बीघापुर कोतवाली क्षेत्र में मंदिर की छत ढालने वाले विवाद में नया घटनाक्रम सामने आया है। अब रानीपुर गाँव में मंदिर की छत ढलाई के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है। मुस्लिम बाहुल्य वाले गाँव रानीपुर में 130 घर मुस्लिमों के हैं और हिंदुओं के बामुश्किल 30 घर, ऐसे में बहुसंख्यक मुस्लिम वर्ग की महिलाओं ने मंदिर निर्माण के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कहा है कि ‘मंदिर की घंटियों से उन्हें परेशानी होगी,’ इसलिए वो मंदिर नहीं बनने देंगे। वहीं, जिस परिवार ने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था, वो दबाव की वजह से उन्नाव से लखनऊ चला गया है।
समाचार पत्र दैनिक जागरण ने फॉलोअप रिपोर्ट में ये जानकारी दी है। बताया जा रहा है कि रानीपुर गाँव की मुस्लिम महिलाओं ने मंदिर निर्माण का खुलेआम विरोध करते हुए भड़काऊँ बयानबाजी भी की है। भड़काऊ बयान के वीडियो सोशल मीडिया पर भी प्रसारित हो रहे हैं। मंदिर का विरोध करने वाली मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि मंदिर की घंटी बजने से उन्हें दिक्कत होगी।
इस बीच, मंदिर निर्माण का संकल्प लेने वाला परिवार उत्पीड़न से परेशान होकर पयालन को मजबूर हो गया है और वो राजधानी लखनऊ शिफ्ट हो गया है। हालाँकि ये पलायन स्थाई है या अस्थाई, इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है।
वहीं, इस पूरे मामले में प्रशासन का रवैया पहले की तरह ही डिफेंसिव है। प्रशासन मामले को शांत कराने की कोशिश कर रहा है। एसडीएम सदर क्षितिज द्विवेदी का बयान भी आया है। उन्होंने जमीन को लेकर किसी समस्या की बात से इन्कार किया है। एसडीएम ने बताया कि विवादित जमीन पैमाइश में आबादी की जमीन निकली है। चबूतरा आबादी की जमीन पर है, तो कोई समस्या नहीं है। हालाँकि मंदिर की छत न ढलने देने को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली है।
इस विवाद में दैनिक जागरण ने एएसपी अखिलेश सिंह का भी पक्ष छापा है। एएसपी ने बताया कि मंदिर की छत ढालने को लेकर कोई अनुमति नहीं ली गई है। यदि अनुमति मांगी जाती है तो मंदिर बनने से कोई रोक नहीं सकेगा। भड़काऊ बयान देने से जुड़ी जानकारियाँ पुलिस के पास नहीं है। पूरे मामले पर पुलिस की नजर है।
डिनायल मोड में क्यों है प्रशासन?
ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से पुलिस और प्रशासन मामले को दबाते दिख रहे हैं। बीघापुर कोतवाली के SHO ने ऑपइंडिया से बातचीत में किसी तनाव से ही इनकार कर दिया था, लेकिन हमने जब सीओ के बयान को लेकर मामले को उठाया, तो उन्होंने स्वीकार किया था कि मामला 7-8 अक्टूबर 2024 का है। 32 लोगों की पाबंदी की गई है, जिसमें 26 मुस्लिम और 6 हिंदू है।
हालाँकि उन्नाव पुलिस ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट के जबाव में बताया कि ये मामला 15 दिन पुराना है। मामला पुलिस के संज्ञान में है।
ये पूरा घटनाक्रम बताता है कि पुलिस और प्रशासन कैसे मामले को जान-बूझकर अनदेखा कर रहे हैं। एसडीएम बयान देते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए अनुमति माँगने ही कोई नहीं आया, लेकिन जमीन की पैमाइश की बात करते हैं। अगर शिकायत ही नहीं हुई, तो पैमाइश कैसी? वहीं, एएसपी कहते हैं कि मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी गई, तो अनुमति मिलने के बाद मंदिर का निर्माण कोई रोक नहीं पाएगा।
बता दें कि गाँव में एक शिव मंदिर है, जो 70 वर्ष से भी अधिक पुराना है। इस मंदिर के चबूतरे पर हिंदू परिवार अपने धार्मिक कार्य जैसे मुंडन, छेदन और शादी-विवाह संपन्न करते हैं। मंदिर के चबूतरे पर चारों ओर दीवारें और खंभे खड़े हैं, लेकिन छत डालने का कार्य अभी लंबित है, क्योंकि गाँव के निहाल, अनीस खान, असगर खान, शोएब, सलीम, यूनुस, अच्छे, रईस जैसे बहुसंख्यक इस्लामी कट्टरपंथियों को ये पसंद नहीं है। इस्लामी कट्टरपंथियों का कहना है मंदिर से सिर्फ 100 मीटर दूर मस्जिद है। मंदिर बन जाने से उनकी नमाज में दिक्कत आएगी।
खैर, ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि मंदिर बनता है या इस्लामी कट्टरपंथी अपनी एकजुटता के दम पर मंदिर निर्माण को रोक देता है। फिलहाल, यहाँ सबसे पहले जरूरत है उत्पीड़ित परिवार की सुरक्षा की, जिसे पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा है।
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